
प्राचीन समय की बात है। एक प्रसिद्ध गुरु के आश्रम में कई शिष्य शिक्षा ग्रहण करते थे। उनमें से एक शिष्य बहुत ही प्रतिभाशाली था, लेकिन वह हमेशा अपनी असफलताओं से हताश रहता था। जब भी उसे कोई कठिनाई आती, वह निराश होकर कहता, “गुरुदेव, मैं यह नहीं कर सकता। यह मेरे बस की बात नहीं है।”
गुरुजी ने उसकी मानसिकता को बदलने का निश्चय किया। एक दिन वे शिष्य को जंगल में ले गए और एक छोटे पौधे की ओर इशारा करते हुए बोले, “इस पौधे को उखाड़ दो।” शिष्य ने आसानी से पौधा उखाड़ दिया। फिर गुरुजी उसे एक थोड़ा बड़ा पौधा दिखाकर बोले, “इसे भी उखाड़ दो।” शिष्य ने थोड़ी मेहनत करके इसे भी उखाड़ दिया।

अब गुरुजी उसे एक विशाल वृक्ष के पास ले गए और बोले, “इसे उखाड़ो।” शिष्य ने पूरा जोर लगाया, लेकिन वह असफल रहा। वह हांफने लगा और हार मानकर बोला, “गुरुदेव, यह असंभव है।”
गुरुजी मुस्कराए और बोले, “बेटा, यही तुम्हारी मानसिकता का सच है। जब कोई आदत या विचार नया होता है, तो उसे बदलना आसान होता है। लेकिन जैसे-जैसे वह पुराना और मजबूत होता जाता है, उसे बदलना उतना ही कठिन हो जाता है। यदि तुम हमेशा यह सोचोगे कि तुम नहीं कर सकते, तो यह नकारात्मक सोच एक विशाल वृक्ष बन जाएगी और तुम्हें कभी आगे बढ़ने नहीं देगी।”
शिष्य को अपनी गलती समझ आ गई। उसने निश्चय किया कि वह अपनी मानसिकता बदलेगा और हर कठिनाई को एक अवसर की तरह स्वीकार करेगा।
सीख: मानसिकता (mindset) ही हमारी सफलता और असफलता तय करती है। सही सोच से कोई भी असंभव कार्य संभव बनाया जा सकता है।